मन विचारों की भूमि है। मन में ही संकल्प -विकल्प उत्पन्न होते रहते हैं। वहीं समाप्त भी होते हैं। अज्ञानतावश, आसक्ति के कारण उन विचारों से हमें सुख- दुख का, आशा- निराशा का, अनुकूलता- प्रतिकूलता का अनुभव होता है। प्रस्तुत पुस्तक में सरल भाषा में विचारों को जानने, कम करने, सकारात्मक करने, ऊर्जावान बनाने के वैज्ञानिक तथा व्यवहारिक तरीके बताएं गये हैं। विचारों के परिष्कर से किस प्रकार मन के स्तर से ऊपर उठकर आनंद के उच्च स्तर तक पहुंचा जा सकता है? भाषा को यथासंभव सरल रखा गया है। उद्देश्य है अपनी सकारात्मक चेतना में वृद्धि करते हुए जीवन में सदा आनंद की अनुभूति करना। यह सब परमेश्वर की शक्ति, चेतना का परिणाम है। लक्ष्य है सतत, अक्षय आनंद। मुझे विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों को उनके मन में उठने वाले विचारों को आनंदमय बनाने में सफल होगी।
Rajendra Nath Pandey
राजेन्द्र नाथ पांडेय जिला अधिकारी (हाई स्कूल समकक्ष )तक शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी विद्यालय हरिद्वार। एम.एस.सी (गणित ) गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार । प्रवक्ता (गणित)- जनता महाविद्यालय, अजीतमल, जिला इटावा (उत्तर प्रदेश) उत्तर प्रदेश राज्यसम्मिलित प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से 1973 में कोषा अधिकारी तथा 1974 में बिक्री- कर अधिकारी पद पर चयनित। लगभग 35 वर्ष प्रशासनिक सेवा में कार्यरत रहते हुए एडिशनल कमिश्नर के पद से सेवानिवृत्त। प्रकाशन- सदाचरण से ब्रह्मज्ञान तक ( संक्षिप्त- मनुस्मृति तथा ईशादि नौ उपनिषद) हिंदी में । संयोजक - तुम्हें वंदन हमारी आस्था का ( आचार्य विष्णु दत्त राकेश अभिनंदन ग्रंथ) उपनिषद हिंदी में संयोजक बंधन हमारी आस्था का आचार्य वंदन अभिनंदन