आधुनिकीकरण के कारण मानव का प्राकृति से नाता टूट चुका है। उस टूटे रिश्ते को वापिस जोड़ने का काम प्रसाद और तांबे करते हैं। प्राकृति की क्रोड़ में लौटने का संदेश वे देते हैं। प्रसाद यथार्थवादी और आदर्शवादी हैं जबकि तांबे आदर्शवादी कम और यथार्थवादी अधिक है। दोनों ने परवशता से कुंठित, दलित समाज का चित्रण किया है। साथ ही अकाल, विवाह की समस्या, बलिप्रथा, निर्धनता, दयनीयता, विषमता, कुंठावस्था, शोषण आदि विभिन्न समस्याओं का चित्रण भी किया है। एक ओर उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक दमन चक्र का यथार्थ चित्रण किया है तो दूसरी ओर प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति का चित्रण कर आदर्श समाज व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत किया है। प्रसाद और तांबे ने राष्ट्रप्रेम को उद्धध्द करने के लिए भारत के गौरवशाली इतिहास को प्रस्तुत किया है। जिससे भारतीय अपनी खोई हुई अस्मिता को पुनः प्राप्त कर सकें और उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना का उदय हो। दोनों आशावादी कवि हैं। उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों की भर्त्सना करते हुए जनसाधारण में आशा की किरण उत्पन्न की। सत्ता का निषेध कर जनजागरण का आह्वान किया। विदेशी हुकूमत को समाप्त करने के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने का काम उन्होंने किया है। अंग्रेजी सत्ता, भौतिकवाद, यांत्रिक आविष्कार, महलों का शोषण आदि सभी का निषेध वे करते हैं। वे अपने युग का सम्पूर्णत: प्रतिनिधित्व करने में सक्षम है तथा अपने समकालीन एवं परवर्ती कवियों का मार्गदर्शन भी करते हैं। प्रसाद और तांबे का काव्य कालजयी है।
Dr. Anant kedare
डॉ. अनंत केदारे, जन्म: 24 जून, 1983, शिक्षा: एम.ए. बी एड , सेट,नेट, एम.फिल, पी. एच.डी (हिंदी) संप्रति: हिंदी विभाग,कला, वाणिज्य व विज्ञान महाविद्यालय, सात्रल, तहसील- राहूरी, जिला - अहमदनगर ( महाराष्ट्र)